बिहार के वैशाली जिले में हाजीपुर के रहने वाले प्रमोद भगत को बचपन से ही खेल के प्रति दीवानगी थी लेकिन पांच साल की उम्र ही वह पोलियो का शिकार हो गए लेकिन इसके बाद भी उनके मन से खेल नहीं निकल पाया। इलाज के लिए उनकी बुआ उन्हें अपने साथ ओडिशा लेकर चली गईं। इलाज भी चला लेकिन पोलियो ने पीछा नहीं छोड़ा।
प्रमोद के किसान पिता राम भगत बताते हैं कि उनके बेटे को बचपन से ही खेल का शौक था लेकिन पांच साल की उम्र पोलियो हो जाने से पूरा परिवार निराश हाे गया। उनकी बहन किशुनी देवी को कोई संतान नहीं था इसलिए उन्होंने प्रमोद को गोद ले लिया और अपने साथ ओडिशा लेकर चली गईं। भुवनेश्वर में ही प्रमोद ने शिक्षा ग्रहण की। वर्तमान में वह स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं।#IND have another #gold medal - and there's not a dry eye in the house!
Many congratulations, Pramod Bhagat - Paralympic champion! #ParaBadminton #Paralympics #Tokyo2020
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अर्जुन अवार्डी प्रमोद कुमार के इरादे पोलियो की वजह से कभी कमजोर नहीं हुए। उन्होंने इसे ही अपनी ताकत बना लिया और बैडमिंटन खेलना शुरू किया। उनकी लगन, हिम्मत और जुनून का ही परिणाम है कि दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर पूरी दुनिया में भारत का मान बढ़ाया।
इससे पहले वर्ष 2006 में प्रमाेद का चयन ओडिशा टीम में हुआ था। वहीं, वर्ष 2019 में उन्हें राष्ट्रीय टीम में शामिल किया गया। उन्हें वर्ष 2019 में अर्जुन अवॉर्ड तथा ओडिशा सरकार की ओर से बीजू पटनायक अवॉर्ड मिल चुके हैं। वह विश्व चैंपियनशिप में चार स्वर्ण पदक समेत 45 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं। बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में पिछले आठ साल में उन्होंने दो स्वर्ण और एक रजत पदक अपने नाम किए हैं। वर्ष 2018 पैरा एशियाई खेलों में उन्होंने एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीता था।Gold Medalist Pramod Bhagat on his victory...
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प्रमोद भगत ने पैरालंपिक खेलों के बैडमिंटन स्पर्धा में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतने के बार कहा कि यह उनके लिए यादगार क्षण है।
उन्होंने शनिवार को फाइनल में ब्रिटेन के डैनियल बेथेल के खिलाफ अपनी जीत का श्रेय एक रणनीति को दिया, जिसे उन्होंने अतीत में उसी प्रतिद्वंद्वी से हारने के बाद तैयार किया था।
मौजूदा विश्व चैम्पियन भगत ने पुरुष एकल एसएल3 वर्ग के फाइनल में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराया। उन्होंने दूसरी वरीयता प्राप्त खिलाड़ी के खिलाफ रोमांचक मुकाबले में 21-14 21-17 से जीत दर्ज की।
इसी वर्ग के तीसरे स्थान के प्लेऑफ में मनोज सरकार ने कांस्य पदक अपने नाम किया। उन्होंने जापान के दाइसुके फुजीहारा को मात दी।
बैडमिंटन इस साल पैरालंपिक खेलों में पदार्पण कर रहा है। दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी भगत इस तरह खेल में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गये।
शीर्ष वरीय खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा, यह मेरे लिए बहुत ही गर्व का क्षण है। मैं भारतीय बैडमिंटन समुदाय और समग्र रूप से भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं।
ओडिशा के 33 साल के इस खिलाड़ी ने कहा, यह पहली बार है कि पैरा बैडमिंटन पैरालंपिक खेलों का हिस्सा बना है और भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतना मेरे लिए यादगार पल है।
चार वर्ष की उम्र में पोलियो के कारण उनका बायां पैर विकृत हो गया था।भगत ने इसके साथ ही 2019 में बेथेल से जापान पैरा बैडमिंटन में मिली शिकस्त का बदला भी चुकता कर लिया।
उन्होंने कहा, मैंने दो साल पहले जापान में इसी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ खेला था और मैं हार गया था। वह मेरे लिए सीखने का मौका था। आज वही स्टेडियम और वही माहौल था। मैंने जीतने की रणनीति बनाई। मैं इसके लिए बहुत दृढ़ निश्चयी था।
रणनीति के बारे में भगत ने कहा, मेरा ध्यान पूरे मैच को जीतने के बजाय शटल को हर बार सही तरीके से मारने पर था। मेरे लिए हर अंक कीमती था।अभी वह मिश्रित युगल एसएल3-एसयू5 वर्ग में कांस्य पदक की दौड़ में बने हुए है।
भगत और उनकी जोड़ीदार पलक कोहली रविवार को कांस्य पदक के प्लेऑफ में जापान के दाईसुके फुजीहारा और अकिको सुगिनो की जोड़ी से भिड़ेंगे।
एसएल3-एसयू5 वर्ग में भगत और पलक की जोड़ी को सेमीफाइनल में इंडोनेशिया की हैरी सुसांतो एवं लीएनी रात्रि आकतिला से 3 - 21, 15 - 21 से हार का सामना करा पड़ा।