यदि हमारे देशवासी अपने ही प्रयासों से अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त हो जाते हैं अथवा यदि ब्रिटिश सरकार हमारे भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो हमसे अधिक प्रसन्नता और किसी को नहीं होगी। लेकिन हम यह मानकर चल रहे हैं कि इन दोनों में से कोई भी संभव नहीं है और सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य है।
युद्ध के दौरान दुनिया-भर में घूमने के बाद और भारत-बर्मा सीमा पर तथा भारत के भीतर दुश्मन की अंदरूनी कमजोरियों को देखने के बाद और अपनी ताकत और साधनों का जायजा लेने के बाद मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि आखिर जीत हमारी होगी।
भारत की आजादी का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका है। आजाद हिंद फौज के सैनिक भारत की भूमि पर बहादुरी से लड़ रहे हैं और हर तरह की कठिनाई के बावजूद वे धीरे-धीरे किंतु दृढ़ता के साथ बढ़ रहे हैं। जब तक आखिरी ब्रिटिश भारत से बाहर नहीं फेंक दिया जाता और जब तक नई दिल्ली में वाइसराय हाउस पर हमारा तिरंगा शान से नहीं लहराता, यह लड़ाई जारी रहेगी।
हमारे राष्ट्रपिता! भारत की आजादी की इस पवित्र लड़ाई में हम आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना कर रहे हैं। जयहिंद!
सुभाषचंद्र बोस- 'कुछ अधखुले पन्ने'
लेखक-राजशेखर व्यास
(सामयिक प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित तीसरे संस्करण का अप्रसारित अंश)