ND
बादामी रात में
नितांत अकेली
मैं
चाँद देखा करती हूँ
तुम्हारी
जरूरत कहाँ रह जाती है,
चाँद जो होता है
मेरे पास
'तुम-सा'
पर मेरे साथ
मुझे देखता
मुझे सुनता
मेरा चाँद
तुम्हारी
जरूरत कहाँ रह जाती है।
ढूँढा करती हूँ मैं सितारों को
लेकिन
मद्धिम रूप में उनकी
बिसात कहाँ रह जाती है,
कुछ-कुछ वैसे ही
जैसे
चाँद हो जब
साथ मेरे
तो तुम्हारी
जरूरत कहाँ रह जाती है।