हर समाज अच्छे-बुरे का हेट्रोजीनियस (विषमांगी) मिश्रण होता है। बुरा कितना भी बुरा क्यों न हो - वह घृणित नहीं होता है। वह किसी भी समाज की आवश्यक बुराई की तरह होता है, इसलिए उसे वैसा ही स्वीकार करने की कला सुझाने का श्रेय मुंशी प्रेमचंद को जाता है। दरअसल प्रेमचंद के बारे में लिखते समय एक कहानी का नाम लिखो तो यकायक जेहन में दूसरा नाम आ जाता है।