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भूमंडल पर सृष्टि की रचना कैसे हुई, सृष्टि का विकास कैसे हुआ और उस रचना में मनुष्य का क्या स्थान है? प्राचीन युग के अनेक भीमकाय जीवों का लोप क्यों हो गया और उस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्य जीवों के लोप होने की कोई आशंका है?
मानव समाज और वन्य जीवों का पारस्परिक संबंध क्या है? यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेजी से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती है आदि प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं।
इसलिए भारत के वन व वन्य जीवों के बारे में थोड़ी जानकारी आवश्यक है, ताकि लोग भलीभाँति समझ सकें कि वन्य जीवों का महत्व क्या है और वे पर्यावरण चक्र में किस प्रकार मनुष्य का साथ देते हैं।

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आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता को जागरूक करने की। पर्यावरण, वन्य जीव-जंतुओं और मानव समाज का सीधा रिश्ता आम आदमी की समझ के मुताबिक समझने के लिए इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखना भी आवश्यक है। जीव-जंतुओं व जंगल का विषय है तो बड़ा 'क्लिष्ट', पर है उतना ही रोचक। इसे समझने के लिए सबसे पहले खुद पर पड़ रहे पर्यावरण के प्रभाव को जानना महत्वपूर्ण है।

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तो आइए हम सब मिलकर इस अभियान में अपने आप को जोड़ें। इसके लिए आपको कहीं जाने या किसी रैली में भाग लेने की जरूरत नहीं, केवल अपने आस-पड़ोस के पर्यावरण का अपने घर जैसा ख्याल रखें जैसे कि -
* घर के आसपास पौधारोपण करें। इससे आप गरमी, भूक्षरण, धूल इत्यादि से बचाव तो कर ही सकते हैं, पक्षियों को बसेरा भी दे सकते हैं, फूल वाले पौधों से आप अनेक कीट-पतंगों को आश्रय व भोजन दे सकते हैं।
* शहरी पर्यावरण में रहने वाले पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ। मगर यह ध्यान रहे कि ऐसा उनसे सम्पर्क में आए बिना करना अच्छा रहेगा, क्योंकि अगर उन्हें मनुष्य की संगत की आदत पड़ गई तो आगे चलकर उनके लिए घातक हो सकती है।
पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें करने से पहले हमें कुछ आदतें अपनाना होंगी व उनका पालन करना होगा, क्योंकि स्थितियाँ बदलने की सबसे अच्छी शुरुआत स्वयं से होती है।