नई दिल्ली। एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कुछ मामलों में कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 से बचने के लिए पहना जाने वाला मास्क किस चीज से बना है, इससे अधिक यह मायने रखता है कि उसे सही ढंग से पहना जाए।
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान हुए तमाम अध्ययनों में बताया गया है कि मास्क पहनने से कोरोनावायरस के प्रसार में कमी आती है लेकिन उचित तरीके से मास्क पहनने के प्रभाव के बारे में हमारी समझ बहुत सीमित है।
पीएलओएस वन पत्रिका में प्रकाशित आलेख में चेहरे पर मास्क पहनने को लेकर अध्ययन किया गया और पाया गया कि बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले मास्क- जैसे एन-95 को भी अगर ठीक तरीके से नहीं पहना जाए तो वे भी कपड़े के मास्क से बेहतर साबित नहीं होते।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, चेहरे की हल्की बनावट में अंतर (जैसे त्वचा में वसा का जमाव) भी मास्क के सटीक तरीके से पहनने में अंतर पैदा कर देता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा नियमित तौर पर मास्क के सटीक होने की जांच की जाती है लेकिन इस जांच के असफल होने की दर अधिक है क्योंकि पहनने वाले द्वारा मामूली लीक का पता लगाना असंभव होता है।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस अध्ययन से भविष्य में ऐसी स्वास्थ्य आपात स्थिति आने पर त्वरित एवं भरोसेमंद फिट टेस्ट विकसित की जा सकेगी। शोधपत्र की प्रथम लेखिका कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की यूजेनिया ओ केली ने कहा, हम जानते हैं कि जब तक मास्क और पहनने वाले की त्वचा के बीच की जगह सील नहीं होगी, तब तक कई बूंदों का रिसाव मास्क के ऊपर एवं किनारे से होगा।
कई लोग जो चश्मा पहनते हैं उन्हें इसकी जानकारी है।इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एन-95 एवं केएन-95 सहित सात तरह के मास्क पर प्रयोग किए। वैज्ञानिकों ने बताया कि जब एन-95 मास्क ठीक तरीके से पहने गए तो इनसे 95 प्रतिशत तक सुरक्षा मिली, लेकिन कुछ मामलों में इनके चेहरे पर ढीले होने पर प्रभाव कपड़े एवं सर्जिकल मास्क के बराबर रहा।(भाषा)
ब्रिटेन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान हुए तमाम अध्ययनों में बताया गया है कि मास्क पहनने से कोरोनावायरस के प्रसार में कमी आती है लेकिन उचित तरीके से मास्क पहनने के प्रभाव के बारे में हमारी समझ बहुत सीमित है।
पीएलओएस वन पत्रिका में प्रकाशित आलेख में चेहरे पर मास्क पहनने को लेकर अध्ययन किया गया और पाया गया कि बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले मास्क- जैसे एन-95 को भी अगर ठीक तरीके से नहीं पहना जाए तो वे भी कपड़े के मास्क से बेहतर साबित नहीं होते।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, चेहरे की हल्की बनावट में अंतर (जैसे त्वचा में वसा का जमाव) भी मास्क के सटीक तरीके से पहनने में अंतर पैदा कर देता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा नियमित तौर पर मास्क के सटीक होने की जांच की जाती है लेकिन इस जांच के असफल होने की दर अधिक है क्योंकि पहनने वाले द्वारा मामूली लीक का पता लगाना असंभव होता है।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस अध्ययन से भविष्य में ऐसी स्वास्थ्य आपात स्थिति आने पर त्वरित एवं भरोसेमंद फिट टेस्ट विकसित की जा सकेगी। शोधपत्र की प्रथम लेखिका कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की यूजेनिया ओ केली ने कहा, हम जानते हैं कि जब तक मास्क और पहनने वाले की त्वचा के बीच की जगह सील नहीं होगी, तब तक कई बूंदों का रिसाव मास्क के ऊपर एवं किनारे से होगा।
कई लोग जो चश्मा पहनते हैं उन्हें इसकी जानकारी है।इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एन-95 एवं केएन-95 सहित सात तरह के मास्क पर प्रयोग किए। वैज्ञानिकों ने बताया कि जब एन-95 मास्क ठीक तरीके से पहने गए तो इनसे 95 प्रतिशत तक सुरक्षा मिली, लेकिन कुछ मामलों में इनके चेहरे पर ढीले होने पर प्रभाव कपड़े एवं सर्जिकल मास्क के बराबर रहा।(भाषा)