समय ताम्रकर|
Last Updated:
शुक्रवार, 7 मई 2021 (18:27 IST)
कर्मा मात्र 26 मिनट की है और इसमें अभय के निर्देशन में थोड़ा कच्चापन नजर आता है जिसे इग्नोर किया जा सकता है। उन पर अपने दादा बीआर चोपड़ा का प्रभाव नजर आता है और उसी तरह का ट्रीटमेंट उन्होंने कहानी के साथ किया है।
कहानी एक जेलर की है जिसके इशारे पर सैकड़ों लोगों को फांसी हुई है। वह इसे अपनी ड्यूटी मान कर ईमानदारी से काम कर रहा है। उस पर भावनाओं का कोई असर नहीं होता। मुश्किल तब खड़ी हो जाती है जब उसे अपने बेटे को फांसी पर चढ़ाना है। फांसी की फांस की चुभन तब उस जेलर को महसूस होती है। फर्ज और भावनाओं के बीच वह खड़ा है।
निर्देशक अभय चोपड़ा ने माहौल और तनाव अच्छा पैदा किया है, लेकिन स्क्रिप्ट में वे मार खा गए। रणबीर कपूर क्यों जेल में है? पिता-पुत्र दो साल से क्यों नहीं मिले? इन सवालों के जवाब देना जरूरी नहीं समझा गया। इस वजह से फिल्म देखते समय अड़चन पैदा होती है।
फिल्म रणबीर कपूर के लिए देखी जा सकती है। बॉलीवुड में डेब्यू करने के पहले ही वे कितने कमाल के एक्टर थे यह इस फिल्म से पता चलता है। लगता ही नहीं यह बंदा कर्मा के दौरान एक्टिंग सीख रहा था। बिलकुल अपने रोल में वे डूबे नजर आते हैं। आक्रोश, झुंझलाहट और भय को उन्होंने अपने से दर्शाकर फिल्म को एंगेजिंग बना दिया है। शरत सक्सेना का अभिनय भी जबरदस्त है।
कर्मा स्टोरी और स्क्रीनप्ले के मामले में लड़खड़ाती है, लेकिन रणबीर कपूर के अभिनय के लिए फिल्म को वक्त दिया जा सकता है।