दूत ने पीछे मुड़कर देखा, मगर उसे कुछ भी नजर न आया।
वह बोला- ‘कहां है वह उपहार? मुझे तो नहीं दिखाई दे रहा।’
तेनालीराम मुस्कुराए और बोले- ‘जरा ध्यान से देखिए दूत महाशय, वह उपहार आपके पीछे ही है- आपका साया अर्थात आपकी परछाई। सुख में, दुख में, जीवनभर यह आपके साथ रहेगा और इसे कोई भी आपसे नहीं छीन सकेगा।’
यह बात सुनते ही राजा कृष्णदेव राय की हंसी छूट गई। दूत भी मुस्कुरा पड़ा और बोला-‘महाराज, मैंने तेनालीराम की बुद्धिमता की काफी तारीफ सुनी थी, आज प्रमाण भी मिल गया।’ तेनालीराम मुस्कराकर रह गया।
(समाप्त)