माई के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि जो कुछ भी दिखाया गया है उस पर यकीन करना मुश्किल है। दो-चार बार आप इग्नोर कर सकते हैं, लेकिन सीन दर सीन, एपिसोड दर एपिसोड यह सब चलता रहता है।
माई बहुत ही साधारण सी महिला है। कम बोलती है। लेकिन जिस तरह से वह अपराधियों को ठिकाने लगाती है। बड़े-बड़े कारनामे करती है वो हैरान से ज्यादा परेशान करते हैं। सीसीटीवी कैमरा, आसपास के लोग जैसी कुछ बातें पूरी तरह से इग्नोर कर दी गई है। वह कहीं भी घुस जाती है। परिस्थितियां हमेशा उसके पक्ष में रहती है। उसका हर दांव कामयाब रहता है इसलिए यह सीरिज बहुत ज्यादा बांध कर नहीं रखती।
माई की पारिवारिक कहानी भी है। जेठ-जेठानी और पति भी उसे जूझना पड़ता है। माई देर रात घर से गायब रहती है। कहां-कहां नहीं जाती, लेकिन कोई भी उससे सवाल नहीं करता। पुलिस है, लेकिन बहुत ज्यादा काम करती नजर नहीं आती। पुलिस से ज्यादा जानकारी माई के पास रहती है।
अच्छी बात यही है कि कमियों के बावजूद इसमें दिलचस्पी बनी रहती है क्योंकि जिस तरह से तार जोड़े गए हैं और नए किरदारों को लगातार इंट्रोड्यूस किया गया है उससे दर्शकों की इस बात में रूचि रहती है कि आखिर इन सबके पीछे है कौन?
साक्षी तंवर का शानदार अभिनय के कारण भी दर्शकों का मन लगा रहता है। ऐसा लगता है कि कहानी घर-घर की के सेट से साक्षी सीधे आई हैं। उनका वही हुलिया है। साधारण दिखने वाली यह महिला अपनी बेटी के लिए ऐसा कुछ कर गुजर जाती है कि वह असाधारण बन जाती है। काश इस यात्रा को और बेहतर बनाया जाता।
निर्देशक अंशई लाल और अतुल मोंगिया ने लखनऊ के माहौल को अच्छा दर्शाया है। साक्षी का लुक और उससे बिलकुल अलग उसकी सोच को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है, लेकिन स्क्रिप्ट पर थोड़ी मेहनत और होती तो यह सीरिज यादगार बन जाती।
निर्देशक: अंशई लाल, अतुल मोंगिया
कलाकार : साक्षी तंवर, विवेक मुश्रान, वामिका गब्बी, रायमा सेन, प्रशांत नारायणन, सीमा पाहवा
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 2/5