होली की कविता: वो होली कोई लौटा दो
तृप्ति मिश्रा | रविवार,मार्च 13,2022
सज गए बाजार
चीनी पिचकारी से
केमिकल से भरी हुई
रंगीन सी क्यारी से
पर इनमें टेसू वाली
चमक कहां से लाऊं मैं
नवगीत: क्यों बसंत गीत गाते हो
तृप्ति मिश्रा | शुक्रवार,फ़रवरी 4,2022
खो गयी कहीं है कोयलिया
क्या तुमको है ये भास हुआ
सूखे पोखर और पनघट
हिन्दी कविता: सिकुड़े फुटपाथ
तृप्ति मिश्रा | गुरुवार,जनवरी 20,2022
नाचती अट्टालिकाएँ हैं
सड़क को मुँह चिढ़ाती
चादरें हैं ओस की
फुटपाथ अब सिकुड़े पड़े हैं
कविता: समझाइश की विरासत
तृप्ति मिश्रा | मंगलवार,जनवरी 4,2022
इस विरासत को तो उन्हें
लेना ही पड़ता है
इसी के अनुरूप सर्वस्व
गढ़ना ही पड़ता है
आखिर क्या है लुप्त होती जा रही विधा कुण्डलिया?
तृप्ति मिश्रा | शनिवार,अक्टूबर 2,2021
विधान तो प्रथम और अंतिम शब्द एक ही रखने का है पर कई कवियों ने इस नियम का पालन नहीं किया है। जैसे काका हाथरसी की अनेक ...
आखिर क्या होती है लुप्त होती जा रही ‘घनाक्षरी विधा’
तृप्ति मिश्रा | रविवार,अगस्त 8,2021
कुछ छंदों में मात्राएं गिनी जाती हैं और कुछ में वर्ण। साथ ही हर छन्द की एक विशिष्ठ लय भी होती है। किसी भी छन्द को लिखने ...
आखिर क्या होती है लुप्त होती जा रही काव्य विधा ‘कह मुकरी’?
तृप्ति मिश्रा | शनिवार,जून 5,2021
अमीर खुसरो ने इस विधा पर बहुत काम किया। उनकी कई कह-मुकरियां बहुत प्रसिद्ध हैं। पर समय के साथ अन्य शास्त्रीय छंदों एवं ...
हिंदी कविता: आभासी रिश्ते
तृप्ति मिश्रा | मंगलवार,मई 25,2021
इबादत और दुआओं के न जाने
न जाने कितने लफ्ज़ मिलते हैं
दुनिया भर के फूल अब रोज़
मेरे फ़ोन में खिलते हैं
स्मृति शेष : मेरी यादों में पुरुषोत्तम नारायण सिंह
तृप्ति मिश्रा | रविवार,मई 23,2021
मेरे ख्यालात थरथरा उठे जब सुबह उठते ही उनके देहावसान की खबर सुनी। पीएन सर.... हां, हम सब जूनियर साहित्यकार इसी नाम से ...
एक ग्रामीण गृहिणी से उत्कर्ष सरपंच तक का सफर
तृप्ति मिश्रा | शनिवार,अक्टूबर 17,2020
जब एक अनुभवी गृहिणी किसी कार्यक्षेत्र में आती है तो हर कार्य के लिए उसका एक अलग ही नज़रिया होता है। यही बात इंदौर जिले ...