गोपालस्वामी ने गत 16 जनवरी को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को अनुशंसा की थी कि चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटा दिया जाना चाहिए। उनकी इस अनुशंसा की विधि विशेषज्ञ फली एस. नरीमन और भाजपा को छोड़कर सभी बड़े राजनीतिक दलों ने आलोचना की थी। भाजपा ने मुख्य चुनाव आयुक्त के कदम का समर्थन किया था।
गौरतलब है कि गोपालस्वामी का कार्यकाल आगामी 20 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। गोपालस्वामी ने कहा कि जहाँ कुछ विधि विशेषज्ञ उनके कदम की आलोचना कर रहे हैं, वहीं हरीश साल्वे जैसे अग्रणी वकीलों ने कहा कि इस तरह की अनुशंसा उन्होंने संवैधानिक अधिकारों के तहत की है।
सीईसी ने कहा कि ऐसा होना था। हर व्यक्ति के पास जो सूचना होती है उसी के नजरिये से वह देखता है। कुछ के लिए यह गलत वक्त है तो कुछ के लिए नहीं।
नरीमन ने कहा था कि यह अवांछित और गलत समय पर उठाया गया कदम है। अगर वह (सीईसी) इस तरह की राय देना चाहते थे तो उन्हें पहले ही ऐसा करना चाहिए था।
पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने भी इसी तरह की राय देते हुए कहा कि सीईसी को अपनी राय देने का कोई अधिकार नहीं है। नियुक्ति और हटाना सरकार के दायरे में है और सीईसी सिर्फ तभी राय दे सकता है, जब उससे राय माँगी गई हो।