माँ की आवाज आखिर तक आते-आते भारी और भीगी हुई लगने लगी थी। कागज का लिफाफा न जाने कितने हाथों से गुजरकर आता होगा, तब भी माँ अपनी संतान का स्पर्श उसमें ढूँढ लेती है। सारे कार्यों को परे ढकेलकर सजल नयनों से माँ को पत्र लिखने बैठ गई।
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