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गुरुवार, 7 जुलाई 2022
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जीने के लिए तेरी याद बहुत थी
जीने के लिए तेरी याद बहुत थी
ND
ND
घर मेरा जलाने को जो आजाद बहुत थी
उस आग को खुद मेरी भी इमदाद बहुत थी
एक ताजमहल ही मेरी बस्ती में नहीं था
काटे हुए हाथों की भी तादाद बहुत थी
होती न अगर जिस्म की तहजीब कोई शै
जीने के लिए एक तेरी
याद
बहुत थी
कैदी की तरह वक्त की मुट्ठी में अना है
कम्बख्त मेरे जिस्म में आजाद बहुत थी
हम
तुम
वो खराबे हैं जो मिटने से बचे हैं
सुनते हैं ये दुनिया कभी आबाद बहुत थी
भगवान तो बस चौदह बरस घर से दूर
WD|
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जफर गोरखपुर
ी
अपने लिए बनवास की मियाद बहुत थी।
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