सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में नरेन्द्र मोदी द्वारा यह कहना कि ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए ताकि हिन्दी में तमिल, बंगाली, गुजराती समेत अन्य भाषाओं के अच्छे शब्द लिए जाएं और इन भाषाओं में हिन्दी के शब्द शामिल किए जाएं, नरेन्द्र कोहली कहते हैं कि मोदी कहा है इसलिए ठीक है, लेकिन मैं इससे बिलकुल भी सहमत नहीं हूं। दरअसल, लेखक और साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी भाषा के शब्द लेकर ही आते हैं। कृष्णा सोबती ने अपनी रचनाओं में पंजाबी शब्द काफी देखने को मिलते हैं, वहीं फणीश्वर नाथ रेणु ने तो खगड़िया के शब्दों (स्थानीय शब्द) का अपनी रचनाओं में उपयोग किया है। (विस्तृत साक्षात्कार के लिए देखें वीडियो)
परोक्ष रूप से नीति नियंताओं पर निशाना साधते हुए कोहली कहते हैं कि जो भाषा आप निर्माण कर रहे हैं वह दुबई, काबुल और लाहौर में समझी जाएगी क्योंकि आप इसमें फारसी और अरबी डाल रहे हैं। यह महाराष्ट्र बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, केरल आदि राज्यों में नहीं समझी जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत की सभी क्षेत्रीय भाषाओं में संस्कृत मूल के शब्द हैं। अत: शब्दावली भी संस्कृत मूल की ही होनी चाहिए। यदि ऐसा होता है तो भारत की भाषाएं और उनके बोलने वाले खुद-ब-खुद एक दूसरे के करीब आ जाएंगे।
कोहली कहते हैं कि मैं सिर्फ रचना लिखता हूं। किसी वर्ग विशेष के बारे में सोचकर नहीं लिखता। जो लोग सोचकर लिखते हैं, वे सिर्फ कृत्रिम साहित्य रचते हैं। दरअसल, उनके पूछा गया था कि बच्चों के लिए किस तरह का साहित्य रचा जाना चाहिए।
विश्व साहित्य सम्मेलन से जुड़े प्रश्न पर कोहली कहते हैं कि निश्चित ही इस तरह के आयोजनों से हिन्दी को फायदा होगा। लोगों की उपस्थिति भी तो इसी ओर इशारा कर रही है। जब हिन्दी को आगे बढ़ाने की बात आती है तो कोहली कहते हैं कि हिन्दी पढ़िए, हिन्दी लिखिए और अच्छी हिन्दी बोलिए। दरअसल, ऐसा करके आप हिन्दी को नहीं, अपनी हिन्दी को सुधारते हैं।